गाँधी के विरोधियों पुजारियों का मेल है
राजनीति सांप और नेवले का खेल है
काँग्रेसियों का देखो आज तुम कमाल जी
धीरे-धीरे पूरी काँग्रेस है हलाल जी
कोई पश्चाताप नहीं ना कोई मलाल जी
क्या हुआ जो जूतियों में बाँट रही है दाल जी
कांग्रेस नेहरु और गोखले की जान थी
कांग्रेस इंदिरा जी की आन-बान-शान थी
कांग्रेस गाँधी जी तिलक का स्वाभिमान थी
कल स्वतंत्रता -सेनानी होने का प्रमाण थी
काँग्रेस अरुणा आसिफ अली का ईमान थी
कांग्रेस भारती की पूजा का सामान थी
कांग्रेस भिन्नता में एकता की तान थी
पूरे देश को जो बांध सके वो कमान थी
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस काँग्रेसी थे
टंडन जी, नरेंदर देव घोष काँग्रेसी थे
लाल बहादुर की अंतिम साँस काँग्रेस थी
लोहिया जी की भी कभी प्यास काँग्रेस थी
लाला लाजपत की चोट वाली काँग्रेस थी
हर गली-गली में वोट वाली काँग्रेस थी
जे.पी. की भी जली थी जवानी काँग्रेस में
आजादी की पली थी कहानी काँग्रेस में
काँग्रेस पार्टी जो शुरू से महान थी
जो स्वतंत्र - काल में अधिक समय प्रधान थी
काँग्रेसी टोपी कल जो शीश पे थी शेरों के
आज पैरों में है ऐरे-गैरे नत्थू खैरों के
डॉ, हरिओम पंवार
ये रचना डा. हरिओम पंवार को समर्पित है, डा. हरिओम पंवार वीर रस के जाने -माने हिंदी कवि है. वो मेरे लिए एक आदर्श रहे है, मेरी दिली तमन्ना रही है कि मैं भी उन्ही के जैसा एक अच्छा कवि बनूँ. वो अपनी रचनाओं से सदा संसार को महकाते रहे. भगवान उन्हें दीर्घायु और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें.
ReplyDeleteजिसने गायी है घायल घाटी के दिल की धड़कन,
और सुनाई है मंचों से वीर सैनिकों के दिल की तडपन
जो बनकर संविधान भारत का, लाल किले से बोले है
जिनकी कविता में अग्निगंधा और शब्दों में शोलें हैं
वो जब भी मंचों से देशभक्ति वाले गीत गाते है,
श्रोताओं के अंदर क्रांति का एक जूनून ले आते है
जिनकी कविता कारगिल में, दुश्मनों पर शूल बनी,
और तिरंगे में लिपटे शहीदों की अर्थी पर फूल बनी
पोखरण विस्फोटों के बाद जब भारत पर प्रतिबंधों का साया था,
दिल्ली का हौंसला बढ़ाने को, तब उसने दिल्ली में गाया था
अब कोई भी प्रतिबन्ध हमें बिलकुल भी नहीं डरा सकता
सी.टी.बी.टी. पर दिल्ली के हस्ताक्षर नही करा सकता
अयोध्या की आग पर भड़की जानता को समझाया था
देश जला देगी, ये चिंगारी मजहब की, उसने गाया था
जिसने अमर शहीदों की यादों से कविता को महकाया है
और जिसने सदैव भूखी अंतड़ियों की पीड़ा को गाया है
कायर सत्ता को दर्पण दिखलाने को कविता जिनकी हथियार है
वीर रस के वो ओजस्वी कवि डा. हरिओम पंवार है
उनकी कविता में निराला, दिनकर, भूषण की पहचान है
माना उन्हें अपना आदर्श, मुझको शत-शत अभिमान है.
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हरी ॐ जी , नमस्कार , आज आपका ब्लॉग मिला तो बहुत ख़ुशी हुई , मई सुमनेश सुमन जी से लगातार संपर्क में रहता हूँ , तथा उनके माध्यम से पता चला आप बहुत ही व्यस्त रहते है , हरी ॐ जी साड़ी जनता अब ये भूल चुकी है उनकी भारत माता का क्या हाल हो चूका है ... अब आशाये मर चुकी है .आप और मै ही आशा का दीपक लेके अन्धो को रौशनी देने की सोच रहे है, मेरे बारे में अधिक सुमनेश जी से पूछिए
ReplyDeleteRespected Hari OM Ji,
ReplyDeleteI read your poems. Its really very inspiring. I would request you to upload" main bharat ka savindhaan bol raha hoon"
डॉक्टर साहब, मैं आपकी कवितायों की बहुत बड़ी प्रशंसक हूँ. मैंने कई बार टीवी पर स्वामी रामदेवजी के मंच से कविता पथ करते हुए देखा है आपकी ओजस्वी वाणी कविता की खूबसूरती को दुगुना चौगना कर देती है. आपके कई विडियो youtube से डाउनलोड भी किये हैं. आज आपकी साईट मिली तो खुद को रोक नहीं पाई. कृपया ऐसे ही वीर रस से परिपूर्ण कवितायों की रचना करते रहिये. आज के वक़्त में सचमुच इनकी बहुत ज़रुरत है.
ReplyDeleteडॉक्टर साहब ,नमस्कार ! देर से जुड़ने के लिए माफ़ी चाहता हूँ।
ReplyDeleteसम्मानीय कवि साहब, आपकी कविताये बहुत ही अच्छी लगतीं हैं, दिन 2-3 बार में आपकी एक कविता को सुनता हूँ जो आपने चंद्रशेखर आज़ाद पर लिखी थी
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