Saturday, August 14, 2010

चन्द्रशेखर आजाद- मैं दामन में दर्द तुम्हारे, अपने लेकर बैठा हूँ आजादी के टूटे-फूटे सपने लेकर बैठा हूँ


मन तो मेरा भी करता है झूमूँ , नाचूँ, गाऊँ मैं
आजादी की स्वर्ण-जयंती वाले गीत सुनाऊँ मैं
लेकिन सरगम वाला वातावरण कहाँ से लाऊँ मैं
मेघ-मल्हारों वाला अन्तयकरण कहाँ से लाऊँ मैं
मैं दामन में दर्द तुम्हारे, अपने लेकर बैठा हूँ
आजादी के टूटे-फूटे सपने लेकर बैठा हूँ

घाव जिन्होंने भारत माता को गहरे दे रक्खे हैं
उन लोगों को जैड सुरक्षा के पहरे दे रक्खे हैं
जो भारत को बरबादी की हद तक लाने वाले हैं
वे ही स्वर्ण-जयंती का पैगाम सुनाने वाले हैं

आज़ादी लाने वालों का तिरस्कार तड़पाता है
बलिदानी-गाथा पर थूका, बार-बार तड़पाता है
क्रांतिकारियों की बलिवेदी जिससे गौरव पाती है
आज़ादी में उस शेखर को भी गाली दी जाती है
राजमहल के अन्दर ऐरे- गैरे तनकर बैठे हैं
बुद्धिमान सब गाँधी जी के बन्दर बनकर बैठे हैं

मै दिनकर की परम्परा का चारण हूँ
भूषण की शैली का नया उदहारण हूँ
इसीलिए मैं अभिनंदन के गीत नहीं गा सकता हूँ |
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ | |

इससे बढ़कर और शर्म की बात नहीं हो सकती थी
आजादी के परवानों पर घात नहीं हो सकती थी
कोई बलिदानी शेखर को आतंकी कह जाता है
पत्थर पर से नाम हटाकर कुर्सी पर रह जाता है
गाली की भी कोई सीमा है कोई मर्यादा है
ये घटना तो देश-द्रोह की परिभाषा से ज्यादा है

सारे वतन-पुरोधा चुप हैं कोई कहीं नहीं बोला
लेकिन कोई ये ना समझे कोई खून नहीं खौला
मेरी आँखों में पानी है सीने में चिंगारी है
राजनीति ने कुर्बानी के दिल पर ठोकर मारी है
सुनकर बलिदानी बेटों का धीरज डोल गया होगा
मंगल पांडे फिर शोणित की भाषा बोल गया होगा

सुनकर हिंद - महासागर की लहरें तड़प गई होंगी
शायद बिस्मिल की गजलों की बहरें तड़प गई होंगी
नीलगगन में कोई पुच्छल तारा टूट गया होगा
अशफाकउल्ला की आँखों में लावा फूट गया होगा
मातृभूमि पर मिटने वाला टोला भी रोया होगा
इन्कलाब का गीत बसंती चोला भी रोया होगा

चुपके-चुपके रोया होगा संगम-तीरथ का पानी
आँसू-आँसू रोयी होगी धरती की चूनर धानी
एक समंदर रोयी होगी भगतसिंह की कुर्बानी
क्या ये ही सुनने की खातिर फाँसी झूले सेनानी
जहाँ मरे आजाद पार्क के पत्ते खड़क गये होंगे
कहीं स्वर्ग में शेखर जी के बाजू फड़क गये होंगे
शायद पल दो पल को उनकी निद्रा भाग गयी होगी
फिर पिस्तौल उठा लेने की इच्छा जाग गयी होगी

केवल सिंहासन का भाट नहीं हूँ मैं
विरुदावलियाँ वाली हाट नहीं हूँ मैं
मैं सूरज का बेटा तम के गीत नहीं गा सकता हूँ |
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ | |

शेखर महायज्ञ का नायक गौरव भारत भू का है
जिसका भारत की जनता से रिश्ता आज लहू का है
जिसके जीवन के दर्शन ने हिम्मत को परिभाषा दी
जिसने पिस्टल की गोली से इन्कलाब को भाषा दी
जिसकी यशगाथा भारत के घर-घर में नभचुम्बी है
जिसकी बेहद अल्प आयु भी कई युगों से लम्बी है

जिसके कारण त्याग अलौकिक माता के आँगन में था
जो इकलौता बेटा होकर आजादी के रण में था
जिसको ख़ूनी मेहंदी से भी देह रचना आता था
आजादी का योद्धा केवल चना-चबेना खाता था
अब तो नेता सड़कें, पर्वत, शहरों को खा जाते हैं
पुल के शिलान्यास के बदले नहरों को खा जाते हैं

जब तक भारत की नदियों में कल-कल बहता पानी है
क्रांति ज्वाल के इतिहासों में शेखर अमर कहानी है
आजादी के कारण जो गोरों से बहुत लड़ी है जी
शेखर की पिस्तौल किसी तीरथ से बहुत बड़ी है जी
स्वर्ण जयंती वाला जो ये मंदिर खड़ा हुआ होगा
शेखर इसकी बुनियादों के नीचे गड़ा हुआ होगा

मैं साहित्य नहीं चोटों का चित्रण हूँ
आजादी के अवमूल्यन का वर्णन हूँ
मैं दर्पण हूँ दागी चेहरों को कैसे भा सकता हूँ
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ

जो भारत-माता की जय के नारे गाने वाले हैं
राष्ट्रवाद की गरिमा, गौरव-ज्ञान सिखाने वाले हैं
जो नैतिकता के अवमूल्यन का ग़म करते रहते हैं
देश-धर्म की रक्षा करने का दम भरते रहते हैं
जो छोटी-छोटी बातों पर संसद में अड़ जाते हैं
और रामजी के मंदिर पर सड़कों पर लड़ जाते हैं

स्वर्ण-जयंती रथ लेकर जो साठ दिनों तक घूमे थे
आजादी की यादों के पत्थर पूजे थे, चूमे थे
इस घटना पर चुप बैठे थे सब के मुहँ पर ताले थे
तब गठबंधन तोड़ा होता जो वे हिम्मत वाले थे
सच्चाई के संकल्पों की कलम सदा ही बोलेगी
समय-तुला तो वर्तमान के अपराधों को तोलेगी

वरना तुम साहस करके दो टूक डांट भी सकते थे
जो शहीदों पर थूक गई वो जीभ काट भी सकते थे
जलियांवाले बाग़ में जो निर्दोषों का हत्यारा था
ऊधमसिंह ने उस डायर को लन्दन जाकर मारा था
जो अतीत को तिरस्कार के चांटे देती आयी है
वर्तमान को जातिवाद के काँटे देती आयी है

जो भारत में पेरियार को पैगम्बर दर्शाती है
वातावरण विषैला करके मन ही मन हर्षाती है
जिसने चित्रकूट नगरी का नाम बदल कर डाल दिया
तुलसी की रामायण का सम्मान कुचल कर डाल दिया
जो कल तिलक, गोखले को गद्दार बताने वाली है
खुद को ही आजादी का हक़दार बताने वाली है

उससे गठबंधन जारी है ये कैसी लाचारी है
शायद कुर्सी और शहीदों में अब कुर्सी प्यारी है
जो सीने पर गोली खाने को आगे बढ़ जाते थे
भारत माता की जय कहकर फाँसी पर चढ़ जाते थे
जिन बेटों ने धरती माता पर कुर्बानी दे डाली
आजादी के हवन-कुंड के लिये जवानी दे डाली

दूर गगन के तारे उनके नाम दिखाई देते हैं
उनके स्मारक भी चारों धाम दिखाई देते हैं
वे देवों की लोकसभा के अंग बने बैठे होंगे
वे सतरंगे इंद्रधनुष के रंग बने बैठे होंगे
उन बेटों की याद भुलाने की नादानी करते हो
इंद्रधनुष के रंग चुराने की नादानी करते हो

जिनके कारण ये भारत आजाद दिखाई देता है
अमर तिरंगा उन बेटों की याद दिखाई देता है
उनका नाम जुबाँ पर लेकर पलकों को झपका लेना
उनकी यादों के पत्थर पर दो आँसू टपका देना

जो धरती में मस्तक बोकर चले गये
दाग़ गुलामी वाला धोकर चले गये
मैं उनकी पूजा की खातिर जीवन भर गा सकता हूँ |
मैं पीड़ा की चीखों में संगीत नहीं ला सकता हूँ | |
डॉ. हरिओम पंवार

Tuesday, August 3, 2010

मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है



अयोध्या की आग पर

चर्चा है अख़बारों में
टी. वी. में बाजारों में
डोली, दुल्हन, कहारों में
सूरज, चंदा, तारों में
आँगन, द्वार, दिवारों में
घाटी और पठारों में
लहरों और किनारों में
भाषण-कविता-नारों में
गाँव-गली-गलियारों में
दिल्ली के दरबारों में

धीरे-धीरे भोली जनता है बलिहारी मजहब की
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की

मैं होता हूँ बेटा एक किसानी का
झोंपड़ियों में पाला दादी-नानी का
मेरी ताकत केवल मेरी जुबान है
मेरी कविता घायल हिंदुस्तान है

मुझको मंदिर-मस्जिद बहुत डराते हैं
ईद-दिवाली भी डर-डर कर आते हैं
पर मेरे कर में है प्याला हाला का
मैं वंशज हूँ दिनकर और निराला का

मैं बोलूँगा चाकू और त्रिशूलों पर
बोलूँगा मंदिर-मस्जिद की भूलों पर
मंदिर-मस्जिद में झगडा हो अच्छा है
जितना है उससे तगड़ा हो अच्छा है

ताकि भोली जनता इनको जान ले

धर्म के ठेकेदारों को पहचान ले
कहना है दिनमानों का
बड़े-बड़े इंसानों का
मजहब के फरमानों का
धर्मों के अरमानों का
स्वयं सवारों को खाती है ग़लत सवारी मजहब की |
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की ||

बाबर हमलावर था मन में गढ़ लेना
इतिहासों में लिखा है पढ़ लेना
जो तुलना करते हैं बाबर-राम की
उनकी बुद्धि है निश्चित किसी गुलाम की

राम हमारे गौरव के प्रतिमान हैं
राम हमारे भारत की पहचान हैं
राम हमारे घट-घट के भगवान् हैं
राम हमारी पूजा हैं अरमान हैं
राम हमारे अंतरमन के प्राण हैं
मंदिर-मस्जिद पूजा के सामान हैं

राम दवा हैं रोग नहीं हैं सुन लेना
राम त्याग हैं भोग नहीं हैं सुन लेना
राम दया हैं क्रोध नहीं हैं जग वालो
राम सत्य हैं शोध नहीं हैं जग वालों
राम हुआ है नाम लोकहितकारी का
रावण से लड़ने वाली खुद्दारी का

दर्पण के आगे आओ
अपने मन को समझाओ
खुद को खुदा नहीं आँको
अपने दामन में झाँको
याद करो इतिहासों को
सैंतालिस की लाशों को

जब भारत को बाँट गई थी वो लाचारी मजहब की |
ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की ||

आग कहाँ लगती है ये किसको गम है
आँखों में कुर्सी हाथों में परचम है
मर्यादा आ गयी चिता के कंडों पर
कूंचे-कूंचे राम टंगे हैं झंडों पर
संत हुए नीलाम चुनावी हट्टी में
पीर-फ़कीर जले मजहब की भट्टी में

कोई भेद नहीं साधू-पाखण्डी में
नंगे हुए सभी वोटों की मंडी में
अब निर्वाचन निर्भर है हथकंडों पर
है फतवों का भर इमामों-पंडों पर
जो सबको भा जाये अबीर नहीं मिलता
ऐसा कोई संत कबीर नहीं मिलता

जिनके माथे पर मजहब का लेखा है
हमने उनको शहर जलाते देखा है
जब पूजा के घर में दंगा होता है
गीत-गजल छंदों का मौसम रोता है
मीर, निराला, दिनकर, मीरा रोते हैं
ग़ालिब, तुलसी, जिगर, कबीरा रोते हैं

भारत माँ के दिल में छाले पड़ते हैं
लिखते-लिखते कागज काले पड़ते हैं
राम नहीं है नारा, बस विश्वाश है
भौतिकता की नहीं, दिलों की प्यास है
राम नहीं मोहताज किसी के झंडों का
सन्यासी, साधू, संतों या पंडों का

राम नहीं मिलते ईंटों में गारा में
राम मिलें निर्धन की आँसू-धारा में
राम मिलें हैं वचन निभाती आयु को
राम मिले हैं घायल पड़े जटायु को
राम मिलेंगे अंगद वाले पाँव में
राम मिले हैं पंचवटी की छाँव में

राम मिलेंगे मर्यादा से जीने में
राम मिलेंगे बजरंगी के सीने में
राम मिले हैं वचनबद्ध वनवासों में
राम मिले हैं केवट के विश्वासों में
राम मिले अनुसुइया की मानवता को
राम मिले सीता जैसी पावनता को

राम मिले ममता की माँ कौशल्या को
राम मिले हैं पत्थर बनी आहिल्या को
राम नहीं मिलते मंदिर के फेरों में
राम मिले शबरी के झूठे बेरों में

मै भी इक सौंगंध राम की खाता हूँ
मै भी गंगाजल की कसम उठाता हूँ
मेरी भारत माँ मुझको वरदान है
मेरी पूजा है मेरा अरमान है
मेरा पूरा भारत धर्म-स्थान है
मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है

डॉ. हरिओम पंवार

Monday, August 2, 2010

घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ



घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ

मैं भी गीत सुना सकता हूँ शबनम के अभिनन्दन के
मै भी ताज पहन सकता हूँ नंदन वन के चन्दन के
लेकिन जब तक पगडण्डी से संसद तक कोलाहल है
तब तक केवल गीत पढूंगा जन-गण-मन के क्रंदन के

जब पंछी के पंखों पर हों पहरे बम के, गोली के
जब पिंजरे में कैद पड़े हों सुर कोयल की बोली के
जब धरती के दामन पार हों दाग लहू की होली के
कैसे कोई गीत सुना दे बिंदिया, कुमकुम, रोली के

मैं झोपड़ियों का चारण हूँ आँसू गाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

कहाँ बनेगें मंदिर-मस्जिद कहाँ बनेगी रजधानी
मण्डल और कमण्डल ने पी डाला आँखों का पानी
प्यार सिखाने वाले बस्ते मजहब के स्कूल गये
इस दुर्घटना में हम अपना देश बनाना भूल गये

कहीं बमों की गर्म हवा है और कहीं त्रिशूल चलें
सोन -चिरैया सूली पर है पंछी गाना भूल चले
आँख खुली तो माँ का दामन नाखूनों से त्रस्त मिला
जिसको जिम्मेदारी सौंपी घर भरने में व्यस्त मिला

क्या ये ही सपना देखा था भगतसिंह की फाँसी ने
जागो राजघाट के गाँधी तुम्हे जगाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

एक नया मजहब जन्मा है पूजाघर बदनाम हुए
दंगे कत्लेआम हुए जितने मजहब के नाम हुए
मोक्ष-कामना झांक रही है सिंहासन के दर्पण में
सन्यासी के चिमटे हैं अब संसद के आलिंगन में

तूफानी बदल छाये हैं नारों के बहकावों के
हमने अपने इष्ट बना डाले हैं चिन्ह चुनावों के
ऐसी आपा धापी जागी सिंहासन को पाने की
मजहब पगडण्डी कर डाली राजमहल में जाने की

जो पूजा के फूल बेच दें खुले आम बाजारों में
मैं ऐसे ठेकेदारों के नाम बताने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

कोई कलमकार के सर पर तलवारें लटकाता है
कोई बन्दे मातरम के गाने पर नाक चढ़ाता है
कोई-कोई ताजमहल का सौदा करने लगता है
कोई गंगा-यमुना अपने घर में भरने लगता है

कोई तिरंगे झण्डे को फाड़े-फूंके आजादी है
कोई गाँधी जी को गाली देने का अपराधी है
कोई चाकू घोंप रहा है संविधान के सीने में
कोई चुगली भेज रहा है मक्का और मदीने में
कोई ढाँचे का गिरना यू. एन. ओ. में ले जाता है
कोई भारत माँ को डायन की गाली दे जाता है

लेकिन सौ गाली होते ही शिशुपाल कट जाते हैं
तुम भी गाली गिनते रहना जोड़ सिखाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

जब कोयल की डोली गिद्धों के घर में आ जाती है
तो बगुला भगतों की टोली हंसों को खा जाती है
इनको कोई सजा नहीं है दिल्ली के कानूनों में
न जाने कितनी ताकत है हर्षद के नाखूनों में

जब फूलों को तितली भी हत्यारी लगने लगती है
तब माँ की अर्थी बेटों को भारी लगने लगती है
जब-जब भी जयचंदों का अभिनन्दन होने लगता है
तब-तब साँपों के बंधन में चन्दन रोने लगता है

जब जुगनू के घर सूरज के घोड़े सोने लगते हैं
तो केवल चुल्लू भर पानी सागर होने लगते हैं
सिंहों को 'म्याऊं' कह दे क्या ये ताकत बिल्ली में है
बिल्ली में क्या ताकत होती कायरता दिल्ली में है

कहते हैं यदि सच बोलो तो प्राण गँवाने पड़ते हैं
मैं भी सच्चाई गा-गाकर शीश कटाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

'भय बिन होय न प्रीत गुसांई' - रामायण सिखलाती है
राम-धनुष के बल पर ही तो सीता लंका से आती है
जब सिंहों की राजसभा में गीदड़ गाने लगते हैं
तो हाथी के मुँह के गन्ने चूहे खाने लगते हैं

केवल रावलपिंडी पर मत थोपो अपने पापों को
दूध पिलाना बंद करो अब आस्तीन के साँपों को
अपने सिक्के खोटे हों तो गैरों की बन आती है
और कला की नगरी मुंबई लोहू में सन जाती है

राजमहल के सारे दर्पण मैले-मैले लगते हैं
इनके ख़ूनी पंजे दरबारों तक फैले लगते हैं
इन सब षड्यंत्रों से परदा उठना बहुत जरुरी है
पहले घर के गद्दारों का मिटना बहुत जरुरी है

पकड़ गर्दनें उनको खींचों बाहर खुले उजाले में
चाहे कातिल सात समंदर पार छुपा हो ताले में
ऊधम सिंह अब भी जीवित है ये समझाने आया हूँ |
घायल भारत माता की तस्वीर दिखाने लाया हूँ ||

डॉ. हरिओम पंवार